Loksadan ।।परिवर्तिनी एकादशी।।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की परिवर्तनी एकादशी तिथि 03 सितंबर 2025 बुधवार को प्रात: 03 बजकर 53 मिनट से शुरू होगी और 04 सितंबर 2025 गुरुवार को प्रात: 04 बजकर 21 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।
अतः उदया तिथि के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 03 सितंबर 2025 बुधवार को रखा जायेगा।
एकादशी व्रत का पारण 04 सितंबर 2025 गुरुवार को मध्यान्ह 01 बजकर 36 मिनट से सायं 04 बजकर 07 मिनट के बीच किया जाएगा।
*परिवर्तनी एकादशी व्रत कथा*
पाण्डुनन्दन अर्जुन ने कहा – “हे प्रभु! भादों की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसके वत का क्या विधान है? उस एकादशी के उपवास को करने से किस फल की प्राप्ति होती है। हे कृष्ण! कृपा कर यह सब समझाकर कहिए।
श्रीकृष्ण ने कहा – “हे पार्थ! भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जयन्ती एकादशी भी कहते हैं। इस एकादशी की कथा के सुनने मात्र से ही सभी पापों का शमन हो जाता है और मनुष्य स्वर्ग का अधिकारी बन जाता है। इस जयन्ती एकादशी की कथा से नीच पापियों का भी उद्धार हो जाता है। यदि कोई धर्मपरायण मनुष्य एकादशी के दिन मेरा पूजन करता है तो मैं उसको संसार की पूजा का फल देता हूँ। जो मनुष्य मेरी पूजा करता है, उसे मेरे लोक की प्राप्ति होती है। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भगवान श्रीवामन का पूजन करता है, वह तीनों देवता अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश की पूजा करता है। हे पार्थ! जो मनुष्य इस एकादशी का उपवास करते हैं, उन्हें इस संसार में कुछ भी करना शेष नहीं रहता। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।
यह सुन विस्मित होकर अर्जुन ने कहा – “हे जनार्दन! आपके वचनों को सुनकर मैं भ्रम में पड़ गया हूँ कि आप किस प्रकार सोते तथा करवट बदलते हैं? आपने बलि को क्यों बाँधा और वामन रूप धारण करके क्या लीलाएँ कीं। चातुर्मास्य व्रत का विधान क्या है तथा आपके शयन करने पर मनुष्य का क्या कर्त्तव्य है, कृपा कर सब आप विस्तारपूर्वक कहिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – “हे कुन्ती पुत्र अर्जुन! अब तुम समस्त पापों का शमन करने वाली इस कथा का ध्यानपूर्वक श्रवण करो। त्रेतायुग में बलि नाम का एक असुर था। वह अत्यन्त भक्त, दानी, सत्यवादी तथा ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। वह सदा यज्ञ, तप आदि किया करता था। अपनी इसी भक्ति के प्रभाव से वह स्वर्ग में देवेन्द्र के स्थान पर राज्य करने लगा। देवराज इन्द्र तथा अन्य देवता इस बात को सहन नहीं कर सके और भगवान श्रीहरि के पास जाकर प्रार्थना करने लगे। अन्त में मैंने वामन रूप धारण किया और तेजस्वी ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की।” यह सुनकर अर्जुन ने कहा – “हे लीलापति! आपने वामन रूप धारण करके उस बलि को किस प्रकार जीता, कृपा कर यह सब विस्तारपूर्वक बताइये।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – “मैंने वामन रूप धारण करके राजा बलि से याचना की- हे राजन! तुम मुझे तीन पग भूमि दान दे दो, इससे तुम्हें तीन लोक के दान का फल प्राप्त होगा।
राजा बलि ने इस छोटी-सी याचना को स्वीकार कर लिया और भूमि देने को तैयार हो गया। जब उसने मुझे वचन दे दिया, तब मैंने अपना आकार बढ़ाया और भूलोक में पैर, भुवन लोक में जंघा, स्वर्ग लोक में कमर, महलोक में पेट, जनलोक में हृदय, तपलोक में कण्ठ और सत्यलोक में मुख रखकर अपने शीर्ष को ऊँचा उठा लिया। उस समय सूर्य, नक्षत्र, इन्द्र तथा अन्य देवता मेरी स्तुति करने लगे। तब मैंने राजा बलि से पूछा कि हे राजन! अब मैं तीसरा पग कहाँ रखूँ। इतना सुनकर राजा बलि ने अपना शीर्ष नीचे कर लिया।
तब मैंने अपना तीसरा पग उसके शीर्ष पर रख दिया और इस प्रकार देवताओं के हित के लिए मैंने अपने उस असुर भक्त को पाताल लोक में पहुँचा दिया तब वह मुझसे विनती करने लगा।
मैने उससे कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूँगा।
भादों के शुक्ल पक्ष की परिवर्तिनी नामक एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है।
इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं।
इस दिन त्रिलोकी-नाथ श्री विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। इसमें चावल और दही सहित चाँदी का दान दिया जाता है। इस दिन रात्रि को जागरण करना चाहिये।
इस प्रकार उपवास करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग लोक को जाता है। जो मनुष्य पापों को नष्ट करने वाली इस एकादशी व्रत की कथा सुनते हैं, उन्हें अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है।
*कथा-सार*
दान करने के उपरान्त मनुष्य को अभिमान नहीं करना चाहिये। राजा बलि ने अभिमान किया और पाताल को चला गया। इससे इस बात का भी बोध होता है कि अति हर कार्य की बुरी होती है।
*नाड़ीवैद्य पंडित डॉ.नागेंद्र नारायण शर्मा*