बीजापुर – श्रावण मास के चौथे सोमवार को नगर की धरती पर भक्ति और आस्था की अनुपम छवि देखने को मिली, जब नगर के प्राचीन शिव मंदिर में भव्य कांवड़ यात्रा का आयोजन हुआ। यह आयोजन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि श्रद्धा, सेवा और समर्पण का अद्भुत संगम बन गया। सुबह की पहली किरण के साथ ही श्रद्धालुओं का कारवां इंद्रावती नदी के तिमेड़ घाट पर इकट्ठा होने लगा। वहां विधिवत मंत्रोच्चार के बीच मां गंगा और भगवान शिव का आह्वान किया गया। इसके बाद करीब 500 कांवड़िए अपने कांधे पर भगवा और पुष्पों से सजी कांवड़ लिए ‘हर हर महादेव’ और ‘बम-बम भोले’ के जयघोष के साथ यात्रा पर निकल पड़े। साथ ही, इस बार की यात्रा में 200 महिलाओं की टोली ने सिर पर कलश रखकर तीन किलोमीटर की पदयात्रा की, जो भोलेनाथ के प्रति उनकी निष्ठा और शक्ति का परिचायक बनी।
पूरे मार्ग में भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा था। गोल्लगुड़ा के ग्रामीणों ने रास्ते में फूल बरसाकर, जयघोष के साथ और जलपान कराकर कांवड़ियों का स्वागत किया। नगर पंचायत भोपालपटनम द्वारा पेयजल की समुचित व्यवस्था की गई थी, जिससे यात्रा में शामिल भक्तों को गर्मी से राहत मिली। वहीं पुलिस विभाग ने सुरक्षा व्यवस्था को भली- भांति संभाला। तिमेड से नगर तक जवानों की तैनाती की गई थी और यात्रा का मार्ग पूरी तरह नियोजित और नियंत्रित रहा। स्वास्थ्य विभाग की टीम विशेष रूप से सतर्क रही, और कई स्थानों पर डिहाइड्रेशन से पीड़ित कांवड़ियों को प्राथमिक उपचार भी प्रदान किया गया।
शिव मंदिर परिसर इस अवसर पर किसी तीर्थ स्थल जैसा दिखाई दे रहा था। मंदिर को फूलों, पारंपरिक तोरणों और भगवा ध्वजों से इस तरह सजाया गया था कि श्रद्धालु मंदिर की देहरी पर आते ही आध्यात्मिक भावों से भर उठते थे। मंदिर के गर्भगृह में भक्तों की लंबी कतारें लगी थीं, और सभी ने विधिपूर्वक पवित्र जल से शिवलिंग पर जलाभिषेक कर भगवान भोलेनाथ से आशीर्वाद मांगा। पूजा-अर्चना और दर्शन के बाद, मंदिर समिति द्वारा श्रद्धालुओं को दक्षिण भारतीय व्यंजन ‘पुलिहारा’ का प्रसाद वितरित किया गया, जो स्वाद में उत्कृष्ट था।
इस संपूर्ण आयोजन को लेकर शिव मंदिर समिति के अध्यक्ष कमल सिंह कोर्राम ने जानकारी देते हुए कहा कि कांवड़ यात्रा की यह परंपरा वर्ष 2022 से लगातार जारी है, और हर वर्ष इसमें श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। उन्होंने बताया कि इस यात्रा में अब बच्चे, युवा, महिलाएं और बुजुर्ग सभी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, जिससे यह आयोजन एक धार्मिक उत्सव से कहीं आगे, सामाजिक एकजुटता का माध्यम बन गया है।