Loksadan। बीजापुर – जिले के भोपालपटनम विकासखंड के छोटे से गाँव गुल्लापेंटा से निकली एक कहानी आज पूरे समाज के लिए प्रेरणा बन चुकी है। यह कहानी है प्राथमिक शाला गुल्लापेंटा की प्रधान अध्यापिका वरदेवी पाणिग्रही की, जिनके दोनों पैर दिव्यांग हैं, लेकिन उनका हौसला और शिक्षा के प्रति समर्पण अपार है।
2006 से अध्यापन कार्य संभाल रही वरदेवी पाणिग्रही ने जीवन के संघर्षों को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। जन्म से ही पैरों से दिव्यांग रहने के बावजूद उन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की और शिक्षा के माध्यम से समाज को दिशा देने का संकल्प लिया। 2012 में विवाह के बाद भी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए आज वे दो बेटियों की माँ हैं और शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर अपनी जिम्मेदारी पूरी निष्ठा से निभा रही हैं।
वरदेवी का स्कूल पहुँचने का सफर भी अद्भुत है। प्रतिदिन उनके पति उन्हें मोटरसाइकिल पर बैठाकर विद्यालय तक लाते और ले जाते हैं। वहीं, विद्यालय परिसर में सहायक शिक्षक और सहयोगी कर्मचारी उन्हें कुर्सी पर उठाकर एक कक्षा से दूसरी कक्षा तक ले जाते हैं। शारीरिक चुनौतियों के बावजूद वे पाँचों कक्षाओं के विद्यार्थियों को पूरी लगन से पढ़ाती हैं।
अपने छात्रों की पढ़ाई को प्रभावी बनाने के लिए वरदेवी आधुनिक तरीकों का सहारा भी लेती हैं। वे ऑडियो और वीडियो सामग्रियों का उपयोग करती हैं तथा विद्यार्थियों के साथ व्यक्तिगत रूप से संवाद स्थापित करती हैं। परिणामस्वरूप उनके विद्यालय के छात्र उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं।
जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि वरदेवी पाणिग्रही का कार्य न केवल बीजापुर जिले के लिए, बल्कि पूरे राज्य के लिए गर्व की बात है। ऐसे शिक्षकों को विशेष प्रोत्साहन और सम्मान मिलना चाहिए।
शिक्षक दिवस के अवसर पर वरदेवी पाणिग्रही का यह संघर्ष और समर्पण हम सबको यह संदेश देता है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, सच्ची लगन और दृढ़ निश्चय के बल पर हर बाधा को पार किया जा सकता है। सचमुच, वे शिक्षा की उस दीपशिखा की तरह हैं जो स्वयं संघर्षों में जलकर भी दूसरों के जीवन को रोशनी से आलोकित कर रही हैं।